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अनु॑ नो॒ऽद्यानु॑मतिर्य॒ज्ञं दे॒वेषु॑ मन्यताम्। अ॒ग्निश्च॑ हव्य॒वाह॑नो॒ भव॑तं दा॒शुषे॒ मयः॑ ॥९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अनु॑। नः॒। अ॒द्य। अनु॑मति॒रित्यनु॑ऽमतिः। य॒ज्ञम्। दे॒वेषु॑। म॒न्य॒ता॒म् ॥ अ॒ग्निः। च॒। ह॒व्य॒वाह॑न॒ इति॑ हव्य॒ऽवाह॑नः। भव॑तम्। दा॒शुषे॑ मयः॑ ॥९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:9


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (अनुमतिः) अनूकूल विज्ञानवाला जन (अद्य) आज (देवेषु) विद्वानों में (नः) हमारे (यज्ञम्) सुख देने के साधनरूप व्यवहार को (अनु, मन्यताम्) अनुकूल माने, वह (च) और (हव्यवाहनः) ग्रहण करने योग्य पदार्थों को प्राप्त करानेवाले (अग्निः) अग्नि के तुल्य तेजस्वी वा अग्निविद्या का विद्वान् तुम दोनों (दाशुषे) दानशील मनुष्य के लिये (मयः) सुखकारी (भवतम्) होओ ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सत्कर्मों के अनुष्ठान में अनुमति देने और दुष्टकर्मों के अनुष्ठान को निषेध करनेवाले हैं, वे अग्नि आदि की विद्या से सबके लिये सुख देवें ॥९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अनु) (नः) अस्माकम् (अद्य) इदानीम् (अनुमतिः) अनुकूलं विज्ञानम् (यज्ञम्) सुखदानसाधनं व्यवहारम् (देवेषु) विद्वत्सु (मन्यताम्) (अग्निः) पावकवत् तेजस्वी तज्ज्ञो वा (च) समुच्चये (हव्यवाहनः) यो हव्यानि ग्रहीतुं योग्यानि वस्तूनि वहति प्रापयति (भवतम्) (दाशुषे) दात्रे (मयः) सुखकारिणौ। मय इति सुखनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.६) ॥९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - योऽनुमतिरद्य देवेषु नो यज्ञमनुमन्यतां स हव्यवाहनोऽग्निश्च युवां दाशुषे मयः सुखकारिणौ भवतम् ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सत्कर्मानुष्ठानेऽनुमतिदातारो दुष्टकर्मानुष्ठानस्य निषेधकास्तेऽग्न्यादिविद्यया सुखं सर्वेभ्यः प्रयच्छन्ति ॥९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे सत्कर्माच्या अनुष्ठानाला मान्यता देतात व वाईट कर्माच्या अनुष्ठानाचा निषेध करतात त्यांनी अग्नी वगैरे विद्येद्वारे सर्वांना सुख द्यावे.